बुधवार, 21 दिसंबर 2016

Is print media is more reliable than electronic media

आज देश में कुछ भी घटित होता है हम सभी लोग समाचार चेनलो को खोल कर देखते है इस उम्मीद में की यहाँ पर आँखों देखा हाल  मिलेगा, पर वास्तव में ये समाचार चेनल इतने भरोषे के है या नही, क्योंकि एक ही खबर आप १० चेनलो पर देखिये सबके आंकड़े अलग होते है, जब की ये हमे आँखों देखा हाल बताने की बात करते है, तो फिर इन्होंने आँखों से देखा क्या, और सबसे बड़ी बात आज जो न्यूज़ आपने चेनल पर देख ली उसका आपके पास कोई रिकॉर्ड नही है, कल को अगर आप उसकी सत्यता की जाँच के लिए कोर्ट में जाये तो क्या दिखाएंगे, और अगर दिखाया भी तो उनका एक ही जबाब हो सकता है की ये तो हमारे संबाददाता ने आँखों देखा हाल बताया था, जो देखा वही बताया, मानव है गलतिया हो सकती है, और हर समाचार का रिकॉर्ड उनके ही पास  कभी भी बदल  सकते है।

मेने कई समाचार पत्रो को भी पढ़ा और देखा की उनके लिखे वाक्यो को आप सही मान सकते है, वो ज्यादा उसको तोड़ मरोड़  कर नही लिखते है, शायद इसलिए की उनको पता है की अगर ऊल जलूल लिखा तो उसको समेटने में ज्यादा समय लगेगा पर हाथ में माइक हो और सामने कैमरा हो तो कुछ भी बोल दो कौन कुछ पूछने बाला है, पर इन सब के कारण दर्शको में गलत को सही मानने के प्रवत्ति बढ़ती जा रही है, कोई भी दर्शक किसी भी समाचार का क्रॉस परीक्षण कैसे करेगा, उसके पास समय भी तो नही है। 
और समाचार चेनल एक समाचार से ज्यादा से ज्यादा TRP बढ़ाने के लिए उसे और भी ज्यादा सनसनीखेज बनाते रहते है, भले ही बाद में वो घटना या आरोप झूठा ही क्यों न निकले, आजकल जो इन्टरनेट के प्रयोगकर्ता है वो इन्टरनेट पर खबरे पढ़ते है जैसे पटना समाचार बिहार समाचार क्योंकि उनको कही न कही लगता है की टीवी के समाचार इतने भरोषेमंद नही है। 

आखिर क्यों समाचार चेनल अपनी गरिमा नही समझते है क्यों ये देश के एकता और अखण्डता के साथ खिलवाड़ करते है, कुछ साल पहले दादरी में अख़लाक़ की मौत और हैदराबाद में एक दलित की आत्महत्या को ऐसे प्रोजेक्ट किया जैसे की ये राष्ट्रिय क्षति  हो परन्तु केरल, असम , जम्मू और अब तो पश्चिम बंगाल में हो रही संगठित रूप से हिदुओ की हत्या पर सब मौन है,, है कुछ समाचार पत्रो में ये समाचार जरूर है, इसलिए मेरा मानना  है की समाचार पत्र ज्यादा भरोषे के है, बजाये इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के। 

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