रविवार, 28 अगस्त 2016

winning strategy in Hindi

जीत की रणनीति

*Story of the day* – कछुआ और खरगोश – वो कहानी जो आपने नहीं सुनी…

आपने कछुए और खरगोश की कहानी ज़रूर सुनी होगी, *just to remind you;* short में यहाँ बता देता हूँ:

एक बार खरगोश को अपनी तेज चाल पर घमंड हो गया  और वो जो मिलता उसे रेस लगाने के लिए *challenge* करता रहता।

कछुए ने उसकी चुनौती स्वीकार कर ली।

रेस हुई। खरगोश तेजी से भागा और काफी आगे जाने पर पीछे मुड़ कर देखा, कछुआ कहीं आता नज़र नहीं आया, उसने मन ही मन सोचा कछुए को तो यहाँ तक आने में बहुत समय लगेगा, चलो थोड़ी देर आराम कर लेते हैं, और वह एक पेड़ के नीचे लेट गया। लेटे-लेटे  कब उसकी आँख लग गयी पता ही नहीं चला।

उधर कछुआ धीरे-धीरे मगर लगातार चलता रहा। बहुत देर बाद जब खरगोश की आँख खुली तो कछुआ फिनिशिंग लाइन तक पहुँचने वाला था। खरगोश तेजी से भागा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और कछुआ रेस जीत गया।

*Moral of the story: Slow and steady wins the race.* धीमा और लगातार चलने वाला रेस जीतता है।

ये कहानी तो हम सब जानते हैं, अब आगे की कहानी देखते हैं:


रेस हारने के बाद खरगोश निराश हो जाता है, वो अपनी हार पर चिंतन करता है और उसे समझ आता है कि वो *overconfident* होने के कारण ये रेस हार गया…उसे अपनी मंजिल तक पहुँच कर ही रुकना चाहिए था।

अगले दिन वो फिर से कछुए को दौड़ की चुनौती देता है। कछुआ पहली रेस जीत कर आत्मविश्वाश से भरा होता है और तुरंत मान जाता है।

रेस होती है, इस बार खरगोश बिना रुके अंत तक दौड़ता जाता है, और कछुए को एक बहुत बड़े अंतर से हराता है।

*Moral of the story: Fast and consistent will always beat the slow and steady.*  तेज और लगातार चलने वाला धीमे और लगातार चलने वाले से हमेशा जीत जाता है।

यानि *slow and steady* होना अच्छा है लेकिन *fast and consistent*   होना और भी अच्छा है।

कहानी अभी बाकी है जी….

इस बार कछुआ कुछ सोच-विचार करता है और उसे ये बात समझ आती है कि जिस तरह से अभी रेस हो रही है वो कभी-भी इसे जीत नहीं सकता।

वो एक बार फिर खरगोश को एक नयी रेस के लिए चैलेंज करता है, पर इस बार वो रेस का रूट अपने मुताबिक रखने को कहता है। खरगोश तैयार हो जाता है।

रेस शुरू होती है। खरगोश तेजी से तय स्थान की और भागता है, पर उस रास्ते में एक तेज धार नदी बह रही होती है, बेचारे खरगोश को वहीँ रुकना पड़ता है। कछुआ धीरे-धीरे चलता हुआ वहां पहुँचता है, आराम से नदी पार करता है और लक्ष्य तक पहुँच कर रेस जीत जाता है।

*Moral of the story: Know your core competencies and work accordingly to succeed.* पहले अपनी *strengths* को जानो और उसके मुताबिक काम करो जीत ज़रुर मिलेगी.

कहानी अभी भी बाकी है जी …..

इतनी रेस करने के बाद अब कछुआ और खरगोश अच्छे  दोस्त बन गए थे और एक दुसरे की ताकत और कमजोरी समझने लगे थे। दोनों ने मिलकर विचार किया कि अगर हम एक दुसरे का साथ दें तो कोई भी रेस आसानी से जीत सकते हैं।

इसलिए दोनों ने आखिरी रेस एक बार फिर से मिलकर दौड़ने का फैसला किया, पर इस बार *as a competitor* नहीं बल्कि *as a team* काम करने का निश्चय लिया।

दोनों स्टार्टिंग लाइन पे खड़े हो गए…. *get set go* …. और तुरंत ही खरगोश ने कछुए को ऊपर उठा लिया और तेजी से दौड़ने लगा। दोनों जल्द ही नदी के किनारे पहुँच गए। अब कछुए की बारी थी, कछुए ने खरगोश को अपनी पीठ बैठाया और दोनों आराम से नदी पार कर गए। अब एक बार फिर खरगोश कछुए को उठा फिनिशिंग लाइन की ओर दौड़ पड़ा और दोनों ने साथ मिलकर रिकॉर्ड टाइम में रेस पूरी कर ली। दोनों बहुत ही खुश और संतुष्ट थे, आज से पहले कोई रेस जीत कर उन्हें इतनी ख़ुशी नहीं मिली थी।

*Moral of the story: Team Work is always better than individual performance.*  टीम वर्क हमेशा व्यक्तिगत प्रदर्शन से बेहतर होता है।

*Individually* चाहे आप जितने बड़े *performer* हों लेकिन अकेले दम पर हर मैच नहीं जीता सकते।

अगर लगातार जीतना है तो आपको टीम में काम करना सीखना होगा, आपको अपनी काबिलियत के आलावा दूसरों की ताकत को भी समझना होगा। और जब जैसी *situation* हो, उसके हिसाब से टीम की *strengths* को *use* करना होगा

शनिवार, 27 अगस्त 2016

who is lord krishna in hindi

भगवान कृष्ण कौन है

*भगवान श्री कृष्ण*.....🌹

भगवान् *श्री कृष्ण* को अलग अलग स्थानों में अलग अलग नामो से जाना जाता है।

* उत्तर प्रदेश में कृष्ण या गोपाल गोविन्द इत्यादि नामो से जानते है।

* राजस्थान में श्रीनाथजी या ठाकुरजी के नाम से जानते है।

* महाराष्ट्र में बिट्ठल के नाम से भगवान् जाने जाते है।

* उड़ीसा में जगन्नाथ के नाम से जाने जाते है।

* बंगाल में गोपालजी के नाम से जाने जाते है।

* दक्षिण भारत में वेंकटेश या गोविंदा के नाम से जाने जाते है।

* गुजरात में द्वारिकाधीश के नाम से जाने जाते है।

* असम ,त्रिपुरा,नेपाल इत्यादि पूर्वोत्तर क्षेत्रो में कृष्ण नाम से ही पूजा होती है।

* मलेशिया, इंडोनेशिया, अमेरिका, इंग्लैंड, फ़्रांस इत्यादि देशो में कृष्ण नाम ही विख्यात है।

* गोविन्द या गोपाल में "गो" शब्द का अर्थ गाय एवं इन्द्रियों , दोनों से है। गो एक संस्कृत शब्द है और ऋग्वेद में गो का अर्थ होता है मनुष्य की इंद्रिया...जो इन्द्रियों का विजेता हो जिसके वश में इंद्रिया हो वही गोविंद है गोपाल है।

* श्री कृष्ण के पिता का नाम वसुदेव था इसलिए इन्हें आजीवन "वासुदेव" के नाम से जाना गया। श्री कृष्ण के दादा का नाम शूरसेन था..

* श्री कृष्ण का जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद के राजा कंस की जेल में हुआ था।

* श्री कृष्ण ने 16000 राजकुमारियों को असम के राजा नरकासुर की कारागार से मुक्त कराया था और उन राजकुमारियों को आत्महत्या से रोकने के लिए मजबूरी में उनके सम्मान हेतु उनसे विवाह किया था। क्योंकि उस युग में हरण की हुयी स्त्री अछूत समझी जाती थी और समाज उन स्त्रियों को अपनाता नहीं था।।

* श्री कृष्ण की मूल पटरानी एक ही थी जिनका नाम रुक्मणी था जो महाराष्ट्र के विदर्भ राज्य के राजा रुक्मी की बहन थी।। रुक्मी शिशुपाल का मित्र था और श्री कृष्ण का शत्रु ।

* श्री कृष्ण के धनुष का नाम सारंग था। शंख का नाम पाञ्चजन्य था। चक्र का नाम सुदर्शन था। उनकी प्रेमिका का नाम राधारानी था जो बरसाना के सरपंच वृषभानु की बेटी थी। श्री कृष्ण राधारानी से निष्काम और निश्वार्थ प्रेम करते थे। राधारानी श्री कृष्ण से उम्र में बहुत बड़ी थी। लगभग 6 साल से भी ज्यादा का अंतर था। श्री कृष्ण ने 14 वर्ष की उम्र में वृंदावन छोड़ दिया था।। और उसके बाद वो राधा से कभी नहीं मिले।


* श्री कृष्ण विद्या अर्जित करने हेतु मथुरा से उज्जैन मध्य प्रदेश आये थे। और यहाँ उन्होंने उच्च कोटि के ब्राह्मण महर्षि सान्दीपनि से अलौकिक विद्याओ का ज्ञान अर्जित किया था।।

* श्री कृष्ण की कुल 125 वर्ष धरती पर रहे । उनके शरीर का रंग गहरा काला था और उनके शरीर से 24 घंटे पवित्र अष्टगंध महकता था। उनके वस्त्र रेशम के पीले रंग के होते थे और मस्तक पर मोरमुकुट शोभा देता था। उनके सारथि का नाम दारुक था और उनके रथ में चार घोड़े जुते होते थे। उनकी दोनो आँखों में प्रचंड सम्मोहन था।

* श्री कृष्ण के कुलगुरु महर्षि शांडिल्य थे।

* श्री कृष्ण का नामकरण महर्षि गर्ग ने किया था l

* श्री कृष्ण ने गुजरात के समुद्र के बीचो बीच द्वारिका नाम की राजधानी बसाई थी। द्वारिका पूरी सोने की थी और उसका निर्माण देवशिल्पी विश्वकर्मा ने किया था।

* श्री कृष्ण को ज़रा नाम के शिकारी का बाण उनके पैर के अंगूठे मे लगा वो शिकारी पूर्व जन्म का बाली था,बाण लगने के पश्चात भगवान स्वलोक धाम को गमन कर गए।

* श्री कृष्ण ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र में अर्जुन को पवित्र गीता का ज्ञान रविवार शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन मात्र 45 मिनट में दे दिया था।

* श्री कृष्ण ने सिर्फ एक बार बाल्यावस्था में नदी में नग्न स्नान कर रही स्त्रियों के वस्त्र चुराए थे और उन्हें अगली बार यु खुले में नग्न स्नान न करने की नसीहत दी थी।

* श्री कृष्ण के अनुसार गौ हत्या करने वाला असुर है और उसको जीने का कोई अधिकार नहीं।

* श्री कृष्ण अवतार नहीं थे बल्कि अवतारी थे....जिसका अर्थ होता है "पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान्" न ही उनका जन्म साधारण मनुष्य की तरह हुआ था और न ही उनकी मृत्यु हुयी थी।

सर्वान् धर्मान परित्यजम मामेकं शरणम् व्रज
अहम् त्वम् सर्व पापेभ्यो मोक्षस्यामी मा शुच--
( भगवद् गीता अध्याय 18 )

*श्री कृष्ण* : "सभी धर्मो का परित्याग करके एकमात्र मेरी शरण ग्रहण करो, मैं सभी पापो से तुम्हारा उद्धार कर दूंगा,डरो मत

*श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी*
*हे नाथ नारायण वासुदेव* ...👏🏼

*हरे कृष्ण हरे कृष्ण*..
*कृष्ण कृष्ण हरे हरे*..🌹

*राधेकृष्ण राधेकृष्ण* 🌹
                🙏🏼

गुरुवार, 25 अगस्त 2016

Sri raam janm aarti in Hindi

श्री राम जन्म आरती

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी।।
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।
भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी।।
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता।
माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता।।
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता।।
ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै।
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै।।
उपजा जब ग्याना प्रभु मुसकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै।।
माता पुनि बोली सो मति डौली तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा।।
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा।।

मंगलवार, 23 अगस्त 2016

असहिष्णु भारत

पहले विश्व युद्ध में 85 लाख लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था ...
दुसरे विश्व युद्ध की शुरुवात 1939 में हुई ..इसमें मरने वालों की आधिकारिक संख्या 7 करोड़ से अधिक थी ...इन दोनों युद्धों में कुल 16 देशों ने भाग लिया ..इसमें से 15 इसाई देश थे और एक मुस्लिम देश तुर्की भी शामिल था ..दूसरा विश्व युद्ध 9 अगस्त 1945 के दिन यानी जापान पर एटम बम गिराने वाले दिन समाप्त हुआ ...अगर आप आकड़ों पर नज़र डालें तो एक अनुमान के मुताबिक इस्लाम ने अपने जन्म से लेकर अब तक अपने धर्म के प्रचार में दुनिया भर में 270 करोड़ लोगों की हत्या की ..ईसाईयों ने पुरे यूरोप और एशिया मिलाकर 110 करोड़ इंसानों की हत्या केवल कैथोलिक चर्च के कहने पर की ..जिसमे 90 लाख महिलायें थी ...दुनिया को सभ्यता का पाठ पढ़ाने वाले अमेरिका में दस करोड़ "मय सभ्यता" के लोगों की हत्या स्पेन के पादरियों के नेतृत्व में कर दी गयी। सोवियत संघ में स्टालिन ने 1 करोड़ से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतारा ..हिटलर ने 60 लाख यहूदियों को मारा ....आप ये सारी घटनाए गूगल पर सर्च कर सकते हैं ...अमेरिका ने 70 के दशक में लेबनान पर हमला किया ..अस्सी के दशक में अफगानिस्तान पर हमला किया ..नब्बे के दशक में सोमालिया पर हमला किया .....वहीँ ईराक ने नब्बे के दशक में ही कुवैत पर हमला किया ...21वी शताब्दी में अमेरिका ने फिर ईराक पर हमला किया ......यानी इसाई और मुस्लिम देशों ने दुसरे मुस्लिम और इसाई देशों पर अपने प्रभुत्व और व्यवसायिक हित के लिए हमले किये और करोड़ों लोगों का खून बहाया .....मुसलमानों ने तो भारत में 7वी शताब्दी से ही हिन्दुवों का खून बहाना शुरू कर दिया था .......80 के दशक से अकेले काश्मीर में ही 2 लाख से ज्यादा हिन्दुओ की हत्या हो चुकी है .... आज इस्लाम दुनिया में सबसे ज्यादा ज्यादा मारकाट करने वाला साम्प्रदाय बन चुका है .....टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एक लेख के अनुसार 2012 में इंडोनेशिया के मुसलमानों ने वहां के ईसाईयों को इस्लाम कुबूल करने की धमकी दी ...और ना कबूल करने की दशा में गला काट देने को कहा गया ....इसके बाद हजारों की संख्या में ईसाईयों ने इस्लाम कूबुला .....उन्हें खतना करवाना पड़ा ....ताकि उनकी मुस्लिम के रूप में पहचान हो सके .....
अल्जीरिया सालों से इस्लामिक कट्टरपंथियों और वहां की सेना के संघर्ष में पिस रहा है ...नाईजेरिया में मुसलमानों का खुनी संघर्ष चरम पे है ....वहां ईसाईयों के चर्चो को जला दिया गया ...मिस यूनिवर्स के कार्यक्रम के दौरान this day नामक स्थानीय अखबार का दफ्तर इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा जला दिया गया ...केन्या में वहां की लोकतान्त्रिक सरकार के विरुद्ध वहां के मुस्लिम संघठनो ने जेहाद का ऐलान किया ....सूडान में गृह युद्ध के दौरान मुसलमनो और ईसाईयों में भयंकर युद्ध हुवा ...19वी शताब्दी के मध्य में यानी 1860 में लेबनान में वहां के ईसाईयों की हत्या मुसलमानों ने की ....सत्तर के दशक में लेबनान में गृह युद्ध छिड़ गया जो नब्बे की दशक की सुरुवात में जाकर खत्म हुवा जिसमे 1 लाख से अधिक लेबनानी मारे गए ...हज़ारों औरतों का सड़कों पर बलात्कार किया गया .... पाकिस्तान 68 सालों में लाखों हिन्दू, ईसाई, बलूची, अहमदिया और शियाओं को पुलिस और सैनिकों से कटवा दिया... अब ध्यान दीजिये उपरोक्त सभी युद्धों और मार काट खून खराबे में मुस्लमान और इसाई देश शामिल थे .....लेकिन भारत जिसने मानव सभ्यता की शुरुवात से लेकर आज तक किसी भी देश पर हमला नहीं किया उसके सैनिक सालों से जेहादयों के पत्थर खा रहे किसी को उन्हे लगने वाले पत्थर तो नहीं दिखे पर पेलेट गन के छर्रे 57 मुस्लिम देश अपने पिछवाडे मे महसूस कर रहे भारत आज दुनिया का सबसे असहिष्णु देश बताया जा रहा है और हिन्दू को सबसे बड़ा अराजकवादी .........पोस्ट पढ़िए और थोडा विचार कीजिये कौन अराजक है इस्लाम, इसाई या सनातनी हिन्दू

रविवार, 21 अगस्त 2016

अवसर वादी समाज

भारतीय समाज आजदी के बाद से ही यूँ तो संक्रमन काल में चल रहा था पर 21वि सदी में ये संक्रमण बहुत तेज़ी से फैलने लगा है ।

आज ओलिंपिक में भारत की 2 महिलाओ ने महज 2 पदक जीने है और तो हर तरफ बस महिलाओ की ही जय जय कार है । उनके कोच को कोई नही पूछ रहा है जबकि वो भी पुरुष ही है ।

हा अगर कोई पुरुष जीतता तो समाज का एक वर्ग जिसे मै पूर्ण संक्रामक अवसरवादी कहता हूँ जरूर ये सबीत कर देता की ये जीत सिर्फ उसकी नही है उसके पीछे महिलाओ के योगदान की है ।

मुखे याद है जब 1991 में विश्वनाथन आनंद को राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार मिला था तो टाइम्स ऑफ़ इंडिया में एक पूरा लेख छपा था उनकी पत्नी और माता जी को लेकर ।

लेख था राजा के जीत के लिए रानिया हकदार । आज इन दो महिलाओ के पीछे कोई नही है क्या । आज समाज वर्षो से पुरुषो ले समाज के प्रति योगदान को नकार कर महज महिलाओ के महिमा मण्डन में लगा है

आज पुरुष होना एक गाली जैसा लग रहा है । जबकि पुरुष होने का मेरा कोई दोष नही है । में भी एक भाई हूँ पति हूँ पुत्र हूँ पिता हूँ अगर में न हूँ तो फिर ये रिश्ते कौन निभहेगा ।

समाज हम पुरुषो को महिलाओ से कुछ कहने नही देता ये कह कर की अगर तुम्हारी बहिन या बेटी होती तो और ये बात किसी महिला से नही पुछि की अगर तुम्हारे कारण जो इस पुरश के साथ हो रहा है अगर तुम्हारे भाई के साथ होता तो ।

समाज की हिममत नही है किसी महिला से ये पूछने की क्योंकि  ऐसा पूछने पर समाज को उस महिला के सैज खड़े उसके पिता भाई पुत्र और पति उसकी रक्षा के लिए दिख रहे है । और जिसके साथ नही दीखते उसे समाज बिलकुल भाव नही देता

शनिवार, 20 अगस्त 2016

बेटों का क्या दोष है

आज हमारा समाज बेटो को पूरी तरह से उपेक्षित महसूस कराने में लगा है । हर तरफ बस बेटियो के ही गूंज है । कही खबर आती है की डॉक्टर बेटी होने पर फीस नही लेता और पुरे अस्पताल में मिठाइयां बाट देता है । कही खबर आती है की बेटियो ने नाम रोशन किया । कही खबर आती है की इस गाव में बेटी होने पर मनाई जाती है खुसिया और बेटा होने पर मानता है मातम ।

आज काफी दिनों बाद मन बहुत उदास हुआ तो सोचा लिख ही डालू की बेटो का क्या दोष है अगर लोग चाहते है की उनके घर में बेटा हो । बेटा होना बेटे के लिए कोई सुख की सेज नही होती लोग बेटा इसलिए चाहते है की उनकी अपूर्ण इक्षाये पूरी हो सकते उसके काम में हाथ बताये व्यक्ति के बुढ़ापे का सहारा बने ।

अगर आप भी पुरुष है तो मेहसूस तो किया ही होगा की घर के बाहर लड़कियो के कारण लड़को को कितनी जिल्लत झेलने को मिलती है और ये जिल्लत देने वाले पुरुष ही होते है और अगर कुछ कहो तो एक ही जबाब अगर तुमारी बहिन होती तब भी क्या तुम यही कहते । ये एक ऐसा जबाब है जिसके बाद कोई लड़का पलट कर प्रश्न नही करता । पर आज तक किसी ने भी लड़को की इस होती बेज्जती पर किसी लड़की से पूछा की अगर ये सब तुम्हारे भाई के साथ होता तो क्या तुमको अच्छा लगता ।

मुखे किसी लड़की से उम्मीद भी नही है की वो ये कहेगी की अगर मेरे भाई के साथ होता तो मुझे बुरा लगता । हो सकता है लड़की खुद ही अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए बोल दे की मेरा भाई होता तो खुद ही सीट छोड़ देता या कुछ और भी बोल सकती है ।

ज्यादातर जिल्लत कॉलेज में या बस में सीट के लिए होती है । लडकिया आगे की सीट पर बैठेगी भले ही वो देर से आये और बस में कंडक्टर किसी को भी उठा देता था लेडीज को सीट देदो । वो एक तरफ नैतिकता के नाम पर हम पुरुषो से त्याग करबाता था वाही दूसरी ओर अगर लडकिया कुछ बेहतर कर पाती तो एक ही नारा होता था की हमने साबित क्र दिया की हम लड़को से कम नही है ।

पता नही वो कौन लोग है जो हमारे घरो में घुस कर लड़का और लड़की को या यु कहो की बहिन भाई को प्रतिद्वंदी बना गए । आज हर लड़की को लड़का एक चोर लुटेरा एयर बलात्कारी लगता है । कुछ कानून भी बन गए की अगर लड़की घुरि तो जेल । क्या है ये ये केसा लोकतंत्र है जहा समानता के नाम पर लड़को को निचा बनाया जा रहा है । 

दलित आखिर कब तक दलित बना रहेगा

दलित शब्द सुनते ही मन में ऐसे जनसमुदाय का बोध होता है जो गरीबी में जी रहा है जिसके पास जीने के लिए मूल भूत सुविधाये भी नही है शिक्षा और स्वास्थ हेतू उत्तम भोजन की व्यवस्था भी नही है और ये भी आज़ादी के 70 साल बाद । पर इसके लिए दोषी कौन है ।

जब देश आज़ाद हुआ था तब देश की जनसंख्या 40 या 50 करोड़ रही होगी । अंग्रेज जा चुके थे और सरकारी नौकरियों में लाखों पद खाली हुए थे तभी सरकार ने दलितों के लिए 17 प्रतिशत नौकरियों में आरक्छन कर दिया तो उस समय जो व्यक्ति 20 से 30 साल के बीच रहा होगा उसको नौकरी मिली होगी । जिसके पास जैसी शिक्षा होगी उस हिसाब से ।

और उसने अपने बच्चे पढ़ाये होंगे जो 20 साल बाद भी दलित का ठप्पा लगा कर पहुच गए नौकरी के लिये पढ़ाई के लिए और इस उभरते हुए दलित वर्ग ने अपनी उन्नति की चाह में ये भी नही सोचा की अभी उसके लाखो करोडो दलित भाईओ का उद्धार होना बाकि है । ये वर्ग तो बस अपनी उन्नति ही सर्वोपरि मान कर पूर्ण स्वार्थ पूर्ति के लिए आगे बढ़ता रहा ।

और फिर अगले 20 सालो में उनके ही वंशज जिन्होंने 1950 में बाजी मार ली थी ने फिर से दलित का ठप्पा लगा कर शिक्षा और नौकरी हथिया ली और वास्तविक दलित हर साल अपने अच्छे दिन आयेगे इस इनतज़र में बैठ जाया करता था ।

दलितों के लिए निर्धारित सीट पर न तो कोई स्वर्ण जा सकता है और न ही ले सकता है । वो सीट दलित को ही मिलेगी अब चाहे उसके पिता आईएएस हो या मंत्री उसको दलितों वाला लाभ मिलेगा ही ।

आज दलितों की जो स्तिथि है उसके लिए उनके ही सक्षम दलित भाई जिम्मेदार है जो उनके हिस्से की शिक्षा अनुदान और आरक्छन हड़प कर फेसबुक पर सवर्णों को गालिया देते है ।

जो भी सरकार आती है वो दलितों के उद्धार के वादे करती है हजारो योजनाये लागू करती है पर वो सब उनके हीं सक्षम भाई बंद दलित होने का नतकनकर के ले जाते है और वास्तविक दलित को ये लगता है की उनका हक़ सवर्ण अपनी जेबइ रखे है और उनको नही दे रहे है ।