हमारे साथ सबसे होती है, की हम सबकी बात मनना चाहते है खुद को उदार मानसिकता का दिखने के लिए पर क्या वास्तव में हम अपने एक जीवन में सभी दर्शनों का पालन कर सकते है । क्या हम गौतम बुद्ध महावीर स्वामी गांधी जी और सुभास चन्द्र बोस स्वामी विवेका नन्द और दया नन्द सरस्वती सभी के दर्शनों पर एक साथ चल सकते है । शायद नही बिलकुल नही कभी नही ।
क्योंकि सभी का दर्शन अपने अपने अनुभवो के आधार पर बना है । जिसने जो अनुभव किया व्ही उसका दर्शन बन गया । जीवन में जो अपने अनुभव किया वो आपका दर्शन है । फिर हम कई उकने दर्शनों को पूरी तरह मान ले । हमे उनके दर्शनों को आधार मान कर अपना दर्शन बना लेना चाहिए ।
जैसे एक दर्शन है की एक शिष्य को उसके गुरु ने कहा की तुम पढ़ नही सकते क्योंकि तुम्हारे हाथ में रेखा ही नही है । तो उसने पत्तर से लकीर बना कर पढ़ना शुरू किया और वो विद्वान बन गया । ये तो है एक दर्शन जिसमे एक शिष्य ने गुरु की बात को मान कर उनके अनुशार पहले हाथ में लकीर बनाई फिर पढ़ाई शुरू की ।
दूसरा दर्शन है की एक गुरु अपने शिस्यो को समझ रहे थे घुड़ सवारी करने का सबसे जरुरी मन्त्र है की घोड़े पर काबू रखो उसको अपने नियंत्रण में रखो उसको ज्याद प्यार मत करो उस पर तरस मत करो नही तो वो घोडा अलसी हो जायेगा । इस पर एक षिश्य ने अपने घोड़े को अपने भाई की तरह प्रेम किया उसे रस्सी को अपने खुर तोडना सिखाया जिसका गुरु जी ने विरोध किया पर एक दिन गुरु जी अकेले थे तो कुछ अराजक तत्वों ने आश्रम में हमला कर दिया और जब गुरु जी ने मदद को पुकार तो वहा कोई नही था ।
सिर्फ उस शिष्य का घोडा था वो भी बंधा हुआ था क्योंकि शिष्य घर गया था । अब उस घोड़े को अपने खुर से रस्सी तोडना आता था इसलिए रस्सी तोड़ कर वो उनसे भीड़ गया और गुरि जो की जान बचा ली ।
अब अगर आप विवेका नन्द के विचार और दया नन्द के सभी विचार नही मान सकते । जहाँ विवेका नन्द सभी शास्त्रो का सम्मान करते है वही दयानंद जी सिर्फ वेदों का । तो आप दोनों को कैसे मान सकते है ।
हा आप सबके कुछ कुछ विचारो को लेकर के अपना खुद का दर्शन बनाओ वही आपके जीवन में सबसे ज्यादा आपके काम आएगा ।
क्योंकि सभी का दर्शन अपने अपने अनुभवो के आधार पर बना है । जिसने जो अनुभव किया व्ही उसका दर्शन बन गया । जीवन में जो अपने अनुभव किया वो आपका दर्शन है । फिर हम कई उकने दर्शनों को पूरी तरह मान ले । हमे उनके दर्शनों को आधार मान कर अपना दर्शन बना लेना चाहिए ।
जैसे एक दर्शन है की एक शिष्य को उसके गुरु ने कहा की तुम पढ़ नही सकते क्योंकि तुम्हारे हाथ में रेखा ही नही है । तो उसने पत्तर से लकीर बना कर पढ़ना शुरू किया और वो विद्वान बन गया । ये तो है एक दर्शन जिसमे एक शिष्य ने गुरु की बात को मान कर उनके अनुशार पहले हाथ में लकीर बनाई फिर पढ़ाई शुरू की ।
दूसरा दर्शन है की एक गुरु अपने शिस्यो को समझ रहे थे घुड़ सवारी करने का सबसे जरुरी मन्त्र है की घोड़े पर काबू रखो उसको अपने नियंत्रण में रखो उसको ज्याद प्यार मत करो उस पर तरस मत करो नही तो वो घोडा अलसी हो जायेगा । इस पर एक षिश्य ने अपने घोड़े को अपने भाई की तरह प्रेम किया उसे रस्सी को अपने खुर तोडना सिखाया जिसका गुरु जी ने विरोध किया पर एक दिन गुरु जी अकेले थे तो कुछ अराजक तत्वों ने आश्रम में हमला कर दिया और जब गुरु जी ने मदद को पुकार तो वहा कोई नही था ।
सिर्फ उस शिष्य का घोडा था वो भी बंधा हुआ था क्योंकि शिष्य घर गया था । अब उस घोड़े को अपने खुर से रस्सी तोडना आता था इसलिए रस्सी तोड़ कर वो उनसे भीड़ गया और गुरि जो की जान बचा ली ।
अब अगर आप विवेका नन्द के विचार और दया नन्द के सभी विचार नही मान सकते । जहाँ विवेका नन्द सभी शास्त्रो का सम्मान करते है वही दयानंद जी सिर्फ वेदों का । तो आप दोनों को कैसे मान सकते है ।
हा आप सबके कुछ कुछ विचारो को लेकर के अपना खुद का दर्शन बनाओ वही आपके जीवन में सबसे ज्यादा आपके काम आएगा ।
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