शनिवार, 23 जुलाई 2016

Psychology of rioting and looting

क्या  आपने कभी ये जानने की कोशिश की कि लोग दंगे और लूटपाट क्यों करते है । किसी के कहने भर से खून खराबे और तोड़फोड़ करने लगते है ।

शायद जीवन की भगदड़ में समय न मिला हो पर एक दिन ऐसे ही कांड में मेरी भी बस फंस गयी थे और कुछ देर के लिए मेरे लिए समय रुक गया और उस रुके हुए समय में मेने खूब दिमाग लगाया और कोशिश की ये जानने की क्यों लोग मानवता भूल कर हिंसा करने लगते है ।

क्योंकि हिंसा करने वाले लूट करने वाले सरकारी संपत्ति को नुकशान पहुचाने वाले आम जनता के लिए संकट खड़ा करने वाले किसी और ग्रह से नही आते वल्कि हमारे और आपके बीच के ही लोग है ।

पर केसे है ये लोग जो अपने लोगो को नही पहचान पाते और चल देते है एक अनजान सफ़र पर बिना ये सोचे की हम बापस आयेगे भी या नही या जो हम कर रहे है वही कोई हमारे साथ करे तो क्या हो ।

मैने बड़े करीब से देखा है इनलोगो को ये लोग आत्म विस्वास से हीन जीवन की इक्षा से रहित बिना किसी उद्देश्य के अपने शरीर का अपने ही पेरो पर बोझ ढोने वाले लोग है ।

इनको सिर्फ ये पता है की हमारा उद्धारक और प्राणस्वरूप प्रेरणा श्रोत वही है जो हमे एक दारू का पौआ देदे और 500 का नोट देदे इनके लिए ईश्वर या अल्लाह जैसे किसी भी सत्ता शक्ति का कोई अस्तित्व नही है ।

हा इनके लिए धन का अस्तित्व है और उन चीजो का जो इनको दिखती है जिनको ये चाहते है पर उनका इस्तेमाल कैसे किया जाता है इनको ये भी नही पता और इसलिए खुद इस्तेमाल किये जाते है ।

कुछ लोग अपने बड़े उद्देश्य की पूर्ति के लिए इनका छोटा सा उद्देश्य पूरा कर देते है और इनके भीतर बैठी कुंठा को अपने स्वार्थ की अग्नि से प्रज्ज्वलित कर देते है फिर ये इंजन की तरह चालू हो जाते है और इनके सूत्र संचालक अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए सरकार से सौदेबाजी करता है ।

दंगे और लूट के पीछे सिर्फ एक मनोविज्ञान है और वो है जीबन में कुछ न कर पाने की कुंठा और उसको कुछ लोग अपने स्वार्थ विरोधियो के विरुद्ध भड़का कर इनका इंजन चालू कर देते है और ये अपने आसपास के लोगो और वस्तुओ को निशाना बनाने लगते है बिना ये सोचे के कल को अगर मुशीबत आएगी तो शायद यही लोग और वस्तुए हमारे काम आती ।

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