रविवार, 21 अगस्त 2016

अवसर वादी समाज

भारतीय समाज आजदी के बाद से ही यूँ तो संक्रमन काल में चल रहा था पर 21वि सदी में ये संक्रमण बहुत तेज़ी से फैलने लगा है ।

आज ओलिंपिक में भारत की 2 महिलाओ ने महज 2 पदक जीने है और तो हर तरफ बस महिलाओ की ही जय जय कार है । उनके कोच को कोई नही पूछ रहा है जबकि वो भी पुरुष ही है ।

हा अगर कोई पुरुष जीतता तो समाज का एक वर्ग जिसे मै पूर्ण संक्रामक अवसरवादी कहता हूँ जरूर ये सबीत कर देता की ये जीत सिर्फ उसकी नही है उसके पीछे महिलाओ के योगदान की है ।

मुखे याद है जब 1991 में विश्वनाथन आनंद को राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार मिला था तो टाइम्स ऑफ़ इंडिया में एक पूरा लेख छपा था उनकी पत्नी और माता जी को लेकर ।

लेख था राजा के जीत के लिए रानिया हकदार । आज इन दो महिलाओ के पीछे कोई नही है क्या । आज समाज वर्षो से पुरुषो ले समाज के प्रति योगदान को नकार कर महज महिलाओ के महिमा मण्डन में लगा है

आज पुरुष होना एक गाली जैसा लग रहा है । जबकि पुरुष होने का मेरा कोई दोष नही है । में भी एक भाई हूँ पति हूँ पुत्र हूँ पिता हूँ अगर में न हूँ तो फिर ये रिश्ते कौन निभहेगा ।

समाज हम पुरुषो को महिलाओ से कुछ कहने नही देता ये कह कर की अगर तुम्हारी बहिन या बेटी होती तो और ये बात किसी महिला से नही पुछि की अगर तुम्हारे कारण जो इस पुरश के साथ हो रहा है अगर तुम्हारे भाई के साथ होता तो ।

समाज की हिममत नही है किसी महिला से ये पूछने की क्योंकि  ऐसा पूछने पर समाज को उस महिला के सैज खड़े उसके पिता भाई पुत्र और पति उसकी रक्षा के लिए दिख रहे है । और जिसके साथ नही दीखते उसे समाज बिलकुल भाव नही देता

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